केंद्र सरकार ने सत्ता के स्वरूप और उसके उद्देश्य को प्रतीकात्मक रूप से परिभाषित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के नए परिसर का नाम अब ‘सेवा तीर्थ’ होगा, जबकि देशभर के सभी राजभवनों को नया नाम ‘लोकभवन’ दिया गया है। गृह मंत्रालय ने इस संबंध में राज्यों को आधिकारिक आदेश भेज दिया है।
‘सेवा तीर्थ’—नाम में ही छिपा संदेश
‘सेवा तीर्थ’ का अर्थ है सेवा का पवित्र स्थल। इसका उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय सिर्फ प्रशासनिक शक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्र और जनता की सेवा का स्थान है। सरकार का मानना है कि यह नाम बदलना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि शासन की बुनियादी सोच को व्यक्त करने का तरीका है।
राजभवन → लोकभवन: सत्ता नहीं, जनता केंद्र में
देश के सभी राजभवन अब ‘लोकभवन’ कहलाएंगे।
इस बदलाव के पीछे संदेश है कि यह भवन जनता के लिए, सार्वजनिक हित के लिए और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी के लिए समर्पित हैं—न कि किसी परंपरागत ‘राजशाही’ धारणाओं के लिए।
सरकार का कहना है कि सत्ता कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि कर्तव्य और जिम्मेदारी है—और नाम इस विचार का स्पष्ट प्रतीक हैं।
यह बदलाव पहली बार नहीं—पहले भी हुए हैं ऐसे महत्वपूर्ण परिवर्तन
मोदी सरकार के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थलों के नाम बदले गए हैं, जिनमें उद्देश्य यही रहा है कि शासन का केंद्र सत्ता नहीं, सेवा और कर्तव्य बताया जाए।
