डोंगरगढ़। नवरात्र के पावन अवसर पर मां बम्लेश्वरी मंदिर में शुक्रवार देर रात परंपरागत दाई बमलई पंचमी भेंट का आयोजन श्रद्धा और उत्साह के साथ हुआ। सैकड़ों भक्तों की भीड़ के बीच जब खैरागढ़ राजपरिवार के राजकुमार भवानी बहादुर सिंह पहली बार इस आयोजन में शामिल हुए, तो माहौल अचानक राजनीतिक हो गया।
माता के दरबार से ही भवानी बहादुर ने मंदिर प्रबंधन और ट्रस्ट पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि “बमलेश्वरी धाम में बैगा पूजा की परंपरा हमारे पूर्वज राजा कमल नारायण से चली आ रही है, मगर आज उसी परिवार को दरकिनार किया जा रहा है। मेरे दादा ने सेवा भाव से ट्रस्ट की नींव रखी थी, जिसमें सभी वर्गों को सम्मान मिला था। लेकिन आज संस्थापक परिवार को ही बाहर कर दिया गया है।”
“परंपरा का अपमान और समाज की आस्था को ठेस”
राजकुमार ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट अब अपनी मूल भावना से भटक गया है और संस्थापक परिवार तक को महत्व नहीं दे रहा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर गोंड समाज और फाउंडर मेंबर की राय को अनदेखा किया गया, तो समाज खुद अपना हक लेने को मजबूर होगा।
नवरात्र मेले में गर्माई सियासत
भवानी बहादुर की यह तल्ख़ बयानबाज़ी नवरात्र मेले के बीच आते ही डोंगरगढ़ में चर्चा का बड़ा मुद्दा बन गई है। श्रद्धा और राजनीति के इस टकराव ने संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में मंदिर प्रबंधन को लेकर विवाद और गहराएंगे।
डोंगरगढ़ का इतिहास: राजघराने से ट्रस्ट तक का सफर
ब्रिटिश काल में डोंगरगढ़ रियासत छत्तीसगढ़ की प्रमुख रियासतों में गिनी जाती थी। राजा घासीदास की बहादुरी और अंग्रेजों से टक्कर आज भी इतिहास में दर्ज है। 1816 में अंग्रेजों से संघर्ष के बाद डोंगरगढ़ का आधा हिस्सा खैरागढ़ और आधा राजनांदगांव को सौंपा गया। वीरता से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने खैरागढ़ के राजा टिकैत राय को “सिंह” टाइटल और डोंगरगढ़ की गद्दी सौंपी।
आजादी के बाद यह रियासत भारत का हिस्सा बनी और 1976 में राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने मां बम्लेश्वरी मंदिर की व्यवस्थाओं के लिए ट्रस्ट की स्थापना की। तब से लेकर अब तक यही ट्रस्ट मंदिर की पूजा और संचालन संभाल रहा है। लेकिन हालिया विवाद ने न केवल डोंगरगढ़ बल्कि पूरे प्रदेश में हलचल पैदा कर दी है।
