काठमांडू। नेपाल इस समय उथल-पुथल से गुजर रहा है। सेना ने देश की कमान अपने हाथों में ले ली है और हाल की हिंसा के बाद हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं। आंदोलनकारी युवा गैर-राजनीतिक नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की मांग पर अड़े हुए हैं। इसी बीच नेपाल की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की अंतरिम सरकार की प्रमुख बनने की रेस में सबसे आगे निकलती दिख रही हैं।
मोदी की कार्यशैली से प्रभावित
सत्ता संभालने से पहले ही सुशीला कार्की ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की। उन्होंने कहा— “मैं मोदी जी को नमस्कार करती हूं। मुझ पर मोदी जी का बहुत अच्छा प्रभाव है। मैं भारत का बहुत सम्मान करती हूं और उनसे प्यार करती हूं। भारत ने नेपाल की बहुत मदद की है।” कार्की ने साफ किया कि वह इस जिम्मेदारी के लिए तैयार हैं और नेपाल के युवाओं ने उन पर भरोसा जताया है।
पहली प्राथमिकता: प्रदर्शनकारियों का सम्मान
कार्की ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता उन परिवारों के लिए कदम उठाने की होगी, जिन्होंने प्रदर्शनों के दौरान अपने प्रियजनों को खोया है। उन्होंने कहा कि प्रोटेस्ट में शहीद हुए लोगों के परिवारों को न्याय और सहयोग मिलना चाहिए।
आसान नहीं होगा रास्ता
काठमांडू में बुधवार को आर्मी हेडक्वार्टर में नौ घंटे तक चली अहम बैठक में भी नई सरकार पर सहमति नहीं बन सकी। कई जेन-ज़ी समूहों ने कार्की का समर्थन किया है, जबकि कुछ ने उनके नाम पर आपत्ति भी जताई। मेयर बालेंद्र शाह (बालेन) ने भी समर्थन दिया, लेकिन शर्त रखी कि संसद भंग किए बिना अंतरिम सरकार का गठन न हो।
संविधान में उलझनें
विशेषज्ञों के अनुसार राष्ट्रपति के पास दो ही विकल्प हैं— या तो संसद में मौजूद किसी सदस्य को प्रधानमंत्री नियुक्त करें और फिर चुनाव की राह खोलें, या आंदोलनकारियों के प्रस्तावित उम्मीदवार को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाएं। हालांकि दूसरा विकल्प संविधान में स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है, लेकिन नेपाल के इतिहास में कई बार ऐसे मौके आए हैं जब परंपरागत संवैधानिक ढांचे से इतर फैसले लिए गए।
